मुंबई में 2008 में हुए आतंकवादी हमलों के एक प्रमुख आरोपी तहव्वुर राणा के भारत प्रत्यर्पण का रास्ता साफ हो गया है। अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में भारत सरकार के अनुरोध को मंजूरी दे दी है। यह फैसला आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में एक महत्वपूर्ण कदम है और हमलों के पीड़ितों को न्याय दिलाने की दिशा में एक बड़ा प्रयास है।
Photo: Googleमुंबई आतंकवादी हमले: एक भयावह घटना
26/11 का मुंबई हमला भारतीय इतिहास की सबसे भयावह घटनाओं में से एक है। इस हमले में 160 से अधिक लोगों की जान चली गई थी, जिनमें कई विदेशी नागरिक भी शामिल थे। पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा ने इस हमले को अंजाम दिया था। हमले के दौरान मुंबई के ताज होटल, ओबेरॉय होटल, नरीमन हाउस और छत्रपति शिवाजी टर्मिनस जैसे प्रमुख स्थानों को निशाना बनाया गया था।
तहव्वुर राणा पर इन हमलों में आतंकवादियों को सहयोग देने और योजना बनाने में मदद करने का आरोप है। Read More...
प्रत्यर्पण प्रक्रिया और कानूनी लड़ाई
तहव्वुर राणा को 2009 में अमेरिका में गिरफ्तार किया गया था। 2011 में उन्हें मुंबई हमलों से जुड़े आरोपों में बरी कर दिया गया था, लेकिन लश्कर-ए-तैयबा को समर्थन देने और डेनमार्क में हमले की साजिश रचने के मामले में दोषी ठहराया गया था।
2020 में भारत ने राणा के प्रत्यर्पण के लिए औपचारिक अनुरोध किया। राणा ने इस आधार पर प्रत्यर्पण का विरोध किया कि उन्हें मुंबई हमलों के आरोपों में पहले ही बरी कर दिया गया है। लेकिन अमेरिकी अधिकारियों ने भारत के अनुरोध को सही ठहराया, और अब सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे मंजूरी दे दी है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का महत्व
यह फैसला भारत के लिए आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में एक बड़ी जीत है। तहव्वुर राणा का प्रत्यर्पण न केवल मुंबई हमलों के लिए न्याय सुनिश्चित करेगा, बल्कि भारत को इन हमलों की गहरी जांच करने का अवसर भी देगा।
भारत की राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) अब राणा को हिरासत में लेने और आगे की कार्रवाई शुरू करने की तैयारी करेगी।
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अंतरराष्ट्रीय सहयोग का उदाहरण
यह फैसला वैश्विक आतंकवाद के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय समुदाय की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। यह संकेत देता है कि आतंकवाद के दोषियों को न्याय से बचने का कोई रास्ता नहीं है, चाहे वे दुनिया के किसी भी कोने में हों। Read More...
निष्कर्ष
तहव्वुर राणा का भारत प्रत्यर्पण 26/11 के हमलों के पीड़ितों के लिए न्याय की दिशा में एक बड़ा कदम है। यह फैसला अंतरराष्ट्रीय सहयोग और आतंकवाद के खिलाफ सामूहिक लड़ाई का एक मजबूत उदाहरण है। उम्मीद है कि इस विकास से न केवल पीड़ित परिवारों को न्याय मिलेगा, बल्कि आतंकवाद के खिलाफ भारत की प्रतिबद्धता भी और मजबूत होगी।
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